રવિવાર, 17 એપ્રિલ, 2016

तू भी अदीब हो जाए

मोहब्बत हो तुझे और तू भी अदीब हो जाए, हो दुआ का असर और तू भी अजीब हो जाए, देख कर छाँव गेसुओं की शरमा जाए बादल भी, दो जिस्म इक जाँ दिखे तू इतने करीब हो जाए, मर्ज हुआ है कुछ ऐसा, बेचैन रहूँ रात और दिन, इल्तजा है, दवा दे या दे जहर, तू तबीब हो जाए, दिया है हुस्न खुदा ने, उस पे गुरूर न कर इतना, के जिसे अपना कहा, दोस्त भी रकीब हो जाए, आजमाईश बहोत हुई अब इकरार भी कर ले, ख्वाहिश बस इतनी है 'नीर' तू नसीब हो जाए ! नीशीत जोशी 'नीर' (अदीब = writer) 16.04.16

फिर बात कोई भी हो

हर किसीसे मुहब्बत में, बांदा-ए-चश्म पिया नहीं जाता, कर तो लेते है मुहब्बत, फिर तन्हाई में जिया नहीं जाता ! इश्क़ के इजाद करनेवाले कि, बडी ही ग़जब कारीगरी है, कत्ल तो होता है, पर कातिल गिरफ्तार किया नही जाता ! छू लिया था मैंने उनका हाथ, सबील पे मशिक लेते लेते, अब तो उस हाथ को भी, किसी और को दिया नही जाता ! बन के खादिम, बसा लेते है, खूबान की इक तस्वीर दिल में, गर मायूब हो जाए, मुसव्विर से भी ठीक किया नहीं जाता ! प्यार में वो लब-ओ-लहजा भी लतीफ़ से हो जाते है 'नीर', फिर बात कोई भी हो,किसी और का नाम लिया नहीं जाता ! नीशीत जोशी 'नीर' (सबील=place of drinking water, मशिक=water bag, मायूब=difective, मुसव्विर=painter, लतीफ़=fine) 11.04.16

શીખી લીધું

લો મેં દરિયાને પણ શરમાવતા શીખી લીધું, ખોબે પાણીથી તરસ છિપાવતા શીખી લીધું, તાલીમની ઉણપ વરતાવા જ નહીં દઇએ, હૌસલાથી આકાશને આંબતા શીખી લીધું, એકલતા એ પ્રેમની આપેલ સોગાત હો જાણે, ઠહાકા મારી ઉદાસીને દાબતા શીખી લીધુ, બાજી ગોઠવેલી ઇરાદાપૂર્વક એમને જ્યારે, અમે રાજીપે જીતેલી બાજી હારતા શીખી લીધું, ઉંચા સપના જોવાની આદત હતી આંખોને, સાકાર પણ થાશે,મનને સમજાવતા શીખી લીધું, નાસૂર થયેલા ઘાવ રુઝતા વાર તો લાગશે ને, દર્દને મીઠા પ્રેમના ઝેરથી મારતા શીખી લીધું, તબાહી નોતરશે નફરત એવું જાણ્યા છીએ, એટલે સંગઠનના બીજને વાવતા શીખી લીધું. નીશીત જોશી 08.04.16

तेरे रूख से मुझे परदा उठाने दे

तेरे रूख से मुझे परदा उठाने दे, तुर्बत में थोडी कयामत आने दे, मयकदा को मुझे अब भुलाने दे, पास बैठ मेरे, तिश्नगी मिटाने दे, आसाँ नहीं था तेरा प्यार पाना, मिला है तो ख्वाब को सजाने दे, देखेगा तुझे बाम पे चाँद भी जब, टूटेगा गुरूर, दिदार तेरा पाने दे, बन गयी हो तू दिल की धडकन, अब तेरा इश्क़ सर चढ जाने दे ! नीशीत जोशी 04.04.16

चहेरा भी तेरे दीदार से

बैठो मेरे पहलू में आ कर,वक़्त ठहर जाएगा, बादा का चढ़ा नशा भी लामुहाला उतर जाएगा, शोखियाँ तेरे हुस्न की लाती है क़यामत सब पे, तेरे बदन की खुश्बू से चमन भी सवर जाएगा, मुब्तिला-ए-इश्क़ खड़े मिलेंगे तेरे दर पे अक्सर, तिश्नगी मिटाने सारा समंदर भी बिखर जाएगा, महक उठेगी फ़िज़ा भी तेरी एक मुस्कुराहट पे, आलम-ए-हसीं-मंजर निगाहो में बसर जाएगा, माहजबीं हो, नाज़नीन हो, हमनफ़स भी तुम, जानकाह चहेरा भी तेरे दीदार से निखर जाएगा ! नीशीत जोशी (लामुहाला= जरूर, मुब्तिला-ए-इश्क़= इश्क करने वाला, आलम-ए-हसीं-मंजर= नयनाभिराम दृश्य के क्षण, जानकाह= उदास) 01.04.16