રવિવાર, 17 જૂન, 2012

बुला के मुजे

महेफिल में बुला के मुजे रुसवा न करो, दास्तां करा के याद कोइ सौदा न करो, लहू की स्याही से लीखे गये थे जो खत, उस कलम से अब कोइ शीकवा न करो, खुश रहेना अपनी तकदीर को संवारे यहां, मेरी किस्मत के अंधेरो में इजाफा न करो, आये जो तस्सवुरमें कभी तन्हाइके दौरमें, ठुकरा जो दिया है मूजे अब खोजा न करो, जीना था मुश्कील में मरना किया दुस्वार, चूरा के दिल को ऐसे उस पे कब्जा न करो । नीशीत जोशी 15.06.12

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