શનિવાર, 4 જાન્યુઆરી, 2014

इस मिटटी के बदन को, अब मिटटी खा जाए

Khaak-Mutthi-Mein-Liye-Qabar-Ki-Yeh-Sochti-Hon-Poetry-Love-Poetry-In-Urdu-Vol-1 कतरो में जीने से अच्छा है, अब मौत आ जाए, इस मिटटी के बदन को, अब मिटटी खा जाए. सफ़ेद चादर ओढ़ कर, सो जाए एक कब्र में, मुअय्यन मंझिल कि, मुस्तक़ीम राह पा जाए, चराग जलाना रास न आये उसे, आके शायद, उनकी रूह को, कहीं फिर रोती लाश भा जाए, दरमांदा फलक को भी, राहत मिले रोशनी से, जब जब बादलो कि चादर, आसमाँ में छा जाए, ना जाने देना उसे कब्र पे, उनकी आँखे नम लिए, देखके उल्फत, कहीं लाश को न रोना आ जाए !!!! नीशीत जोशी 29.12.13 (मुअय्यन = fixed, मुस्तक़ीम = exact, right, दरमांदा = tired)

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