સોમવાર, 17 માર્ચ, 2014

ऐय जिंदगी !

longing-for-love-sad ऐय जिंदगी ! तू बता तेरी रज़ा क्या है ? हयातगी की मुस्तक़ीम सजा क्या है ? न शिकवा, न कोई ग़म सहना है बाक़ी, तन्हा जिंदगी जीने में मज़ा क्या है ? न हमराही, न हमराज़ रहा अब कोई, अन्जाने सफ़र में ऐसी कज़ा क्या है ? न प्यार रहा,नफरत की दिवार भी नहीं, जिंदगी ! फिर ये माजरा-ए-अज़ा क्या है ? खामोश है लफ्ज, आँखे हर वक़्त रहे नम, ऐय जिंदगी ! तू ही बता ऐसी फ़ज़ा क्या है ?? नीशीत जोशी (कज़ा= judgment, अज़ा= mourning, फ़ज़ा= atmosphere) 11.03.14

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો