રવિવાર, 13 જૂન, 2010
विधीका विधान
जब जब हमने किसी और की मुरत देखी,
तब तब उसी मुरतमे तेरी ही सुरत देखी,
महोब्बत करनी तो थी बहोतो से मगर,
हाथमें हमारे प्यार की एक ही लकीर देखी,
उस लकीर के सहारे नीकल पडे थे राह,
उस राह मे मैने बस तेरी ही जलक देखी,
विधीका विधान भी देखो कैसा है यह,
सामने थे तुम मैने दुसरोकी तस्वीर देखी,
न करना तुम रंजीस देख के यह खेल,
हमने तुजमे ही अपने प्यारकी मुरत देखी,
निभाना लिखा होगा निभा दिया दस्तुर,
दरमीया हमारे हमने दुनीयाकी फितरत देखी,
पथ चाहे जो भी हो नदीका यहभी है विधान,
नदी को आखीरकार समुदरसे मीलती देखी।
निशीत जोशी
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો