રવિવાર, 23 ઑક્ટોબર, 2016

वस्ल का वादा नहीं हुआ

२२१ २१२१ १२२ १२१२ इतना शदीद ग़म का अँधेरा नहीं हुआ, साथी बने बहुत पर तुमसा नहीं हुआ, हमने बना लिया वो घरोंदा यहीं कहीं, फिर भी सुकूँ मिले वो बसेरा नहीं हुआ, एक तुम मिले हमें,वो खुशी भी रही सदा, फिर दिल किसी मुहिब्ब का प्यासा नहीं हुआ, बढते रहे कदम, पुरजोशी रही मेरी, दिल में मगर सफर का सवेरा नहीं हुआ, जज्बात जब्त में रखकर हम रुके रहे, वो हिज्र में भी वस्ल का वादा नहीं हुआ ! नीशीत जोशी 21.10.16

समझूँगा

2122 2122 2122 222 तू अदावत कर, उसे मैं तो मुहब्बत समझूँगा, झूठ भी गर बोलदो, मैं तो सदाकत समझूँगा ! याद में जीना मेरा, दुस्वार ऐसा है की अब, मौत को भी आज, तौफा ए इबादत समझूँगा ! झख्म देना ही, तेरी फितरत अगर है, तो तू दे, मैं उसे बाकायदा, अपनी अमानत समझूँगा ! दिल दिया था, भूल तो की थी नहीं कोई मैंने, हो गये तुम गैर के, अपनी फलाकत समझूँगा ! आजमाना छोडदो अब, हमसफर बन जाओ तुम, बेवफा हो भी गये गर तो, अलालत समझूँगा ! निशीथ जोशी (अदावत-hatred,सदाकत-truth,फलाकत-misfortune,अलालत-sickness) 18.10.16

आँखो से पिलाना आ गया

झूठ को जब आजमाना आ गया, मेरी ठोकर पे जमाना आ गया, तीरगी से अब कौन डरता है यहाँ, चाँद को जब से बुलाना आ गया, इश्क को हमने कभी समझा नहीं, बस हमें उसको निभाना आ गया, आइने के सामने होकर खडे, जिस्म को झूठा सजाना आ गया, रूह जिन्दा है मेरी मर कर यहाँ, कब्र से जज्बा जताना आ गया, खेलना आता नहीं फिर भी मुझे, हार कर बाजी जिताना आ गया, खोल कर आँखे निहारा ख्वाब भी, जब वो ख्वाबो को सजाना आ गया, 'नीर' कुछ है महफिलो का भी सुरूर, और आँखो से पिलाना आ गया ! निशीथ जोशी 'नीर' 15.10.16

हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए

२१२२ २१२२ २१२ वो कभी तन्हा सफर में खो गए, तब तसव्वुर में असीरी हो गए, इल्तजा थी जो कभी पूरी हुई, प्यार का जज्बा जताने को गए, वस्ल की उम्मीद उसने छोड़ दी, हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए, शाम तन्हा रात भी खामोश थी, ख्वाब ने ओढा फलक फिर सो गए, मुद्दतो से वो रहे खामोश पर, गुफ्तगू को बेबहा बल हो गए ! नीशीत जोशी (असीरी =कैद, बेबहा =बहुमूल्य) 12.10.16

जब रहा इश्क़ सिर्फ बातों का,

जब रहा इश्क़ सिर्फ बातों का, कारवाँ थम रहा है साँसों का, कौन कहता रहे उसे अपना, जब भरोसा नही है जज्बों का, ख्वाब आते नही मुझे अब तो, क्यों करें इंतजार रातों का, दर्द गर बढ गया वो फुर्कत में, हाल होगा बुरा वो अश्कों का, महफिलें अब कहाँ रही दिल की, जिक्र कैसे करें वो नग्मों का ! निशीथ जोशी

झख्म हमने सहे बराबर से !

2122-1212-22 अब करो फैसला सितमगर से, झख्म हमने सहे बराबर से ! दर्द सहना हमें बताना था, चुप रहे बेवफाइ के डर से ! कत्ल करना अदायगी उनकी, बात पूछो न कोइ खंजर से ! जीत कर हारने कि है फितरत, कोइ शिकवा नहीं मुकद्दर से ! हाथ तो कुछ न था न होगा अब, सीख लो कुछ कभी सिकंदर से ! नीशीत जोशी

वो हज़ारो हसरतों के सामने लाचार था !

2122-2122-2122-212 जिंदगी में एक कदम चलना भी दुश्वार था, वो हज़ारो हसरतों के सामने लाचार था ! दिल लगाना भी अदा होती है शायद फन नहीं, प्यार में ये दिल मेरा ऐसे मगर बेज़ार था ! प्यार से तुम थाम लेना आज बाँहों में मुझे, क्योंकि वो लम्हा तुम्हारे ही बिना बेकार था ! तब मेरी हर रात एक एक दर्द करती थी बयाँ, झख्म भी जैसे मेरे दिल का नया अन्सार था, इश्क में कब तक करे हम इंतजारी अब कहो, वो ना कहना प्यार में भी तो तेरा इज्हार था ! प्यार के हर एक नुमाइन्दें भी अपने घर चले, इश्क से परहेज़ था तुमको कि फिर इन्कार था ! वो खिलाडी तो नही कोई तुम्हारी ही तरह, हारना उस खेल में तो 'नीर' का शेआर था ! निशीथ जोशी 'नीर' (बेज़ार-नाखुश, अन्सार-friend, शेआर-habit)

હાથ ખાલી હતા સિકંદરના

ગાલગાગા-લગાલગા-ગાગા દુશ્મની કેટલી કરે છે જો, મિત્રતા કેટલી ટકે છે જો, રોજ સુંદર સવાર આવે છે, રાત રોજે નવી પડે છે જો, દેહ ભૂખ્યા રહે અહી લોકો કોણ પ્રેમી ખરા બને છે જો, ઝીંદગીની કદર હવે કોને છે, કોઈને ક્યાં મરણ ગમે છે જો, હાથ ખાલી હતા સિકંદરના, ક્યાં કશુ હાથમાં રહે છે જો . નીશીત જોશી

अँधेरी जिंदगी में देर तक अच्छा नहीं होता !

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ पराया हो गया है, वो कभी अपना नहीं होता, हमे उन पे इरादत है, कभी दावा नहीं होता ! faith हमारी इल्तिजा भी क्या, अधूरी ही रहेगी अब, किसी भी आशिको के दरमियाँ, ऐसा नहीं होता ! मुहब्बत जब हुई थी तब, किये थे कॉल उसने भी, मगर वादा निभाते वक़्त, वो जज़्बा नहीं होता ! सफर कांटो भरा हो और रास्ता फिर लगे लंबा, मगर हर एक डगर में लोग, हमसाया नहीं होता ! अदावत क्यों करें अब हम चिरागो से अँधेरो में, अँधेरी जिंदगी में देर तक अच्छा नहीं होता ! नीशीत जोशी 24.09.16