શુક્રવાર, 1 સપ્ટેમ્બર, 2017

है ये दर्दे जफ़ा कई दिन से

2122-1212-22 है ये दर्दे जफ़ा कई दिन से, मिल रही है सजा कई दिन से ! वस्ल का तो किया था वादा पर, मुन्तज़िर ही रखा कई दिन से ! अब कहाँ मंजिलो को ढूँढूँ मैं, रास्ता खो गया कई दिन से ! प्यार में लाजिमन मेरे थे वोह, फिर भी डरता रहा कई दिन से ! घाव जो जो दिए है दिलबर ने, बन गये लादवा कई दिन से ! लादवा ज़ख़्म,और दिल ग़मगीन, जी नहीं लग रहा कई दिन से ! जिंदगी प्यार बिन नहीं कुछ भी, शोर फिर क्यों मचा कई दिन से ! नीशीत जोशी 'नीर' (जफ़ा- सितम,लाजिमन- निश्चित रूप से,लादवा- नाइलाज)

खुद मुहब्बत को जताने आ गये !

2122-2122-212 क्या कहूँ कैसे जमाने आ गये, राहज़न रस्ता दिखाने आ गये ! फिर कहाँ बाक़ी रहा अब होंश ही, जब वो आँखों से पिलाने आ गये ! कैसे पाऊँगा मैं मंज़िल जब के वो, हमसफर बनकर सताने आ गये ! जब क़फस का दर्द दिल में जा चुभा, हम परिंदे को उडाने आ गये ! तन के ज़ख्मों को सहा हँस के सदा, ज़ख्म-ए-दिल मुझको रुलाने आ गये ! सुनके अपनी बेवफाई की ग़ज़ल, खुद मुहब्बत को जताने आ गये ! जब मिला औरों से धोखा इश्क़ में, 'नीर' से वो दिल लगाने आ गये ! नीशीत जोशी 'नीर'

दर्द जिगर में सोया होगा

22-22-22-22 यादो में वो खोया होगा, पल पल फिर वो रोया होगा ! तडपाया होगा फुरकत ने, शब भर क्या वो सोया होगा ! जिंदा रहने को ही उसने, सांसों को फिर ढोया होगा ! आँखें तो अश्कों से भर लीं दर्द जिगर में सोया होगा ! उल्फत को सह कर फिर उसने, सब ज़ख़्मों को ढोया होगा ! नीशीत जोशी ' नीर '

ऐसा हर एक शख्श यहाँ ग़मज़दा मिला

221-2121-1221-212 ऐसा हर एक शख्श यहाँ ग़मज़दा मिला, जैसे कि मर्ज़ कोई उसे लादवा मिला! कैसे सहा ग़मों के वो नश्तर न पूछिये, जब भी मिला तो दर्द का एक काफ़िला मिला! कुछ पल भी जी सका न मैं चैन ओ सुकून से, हर इक क़दम पे मुझ को नया हादसा मिला! छाले तो पाँव में भी पड़े उम्र भर मगर, हद्द तो ये है कि दिल में मुझे आबला मिला! करते रहे थे इश्क़ रवायत को भुल कर, लेकीन कभी न प्यार का मुझको सिला मिला! नीशीत जोशी 'नीर' (ग़मज़दा-दुखी, लादवा- नाइलाज, आबला-छाला)

होते अगर तुम यार तो

होते अगर तुम यार तो, होता मुझे फिर प्यार तो ! मरते जमाले हुश्न पर, करते नजर से वार तो ! शरमा भी जाए चाँद फिर, हो गर तेरा दीदार तो ! मीठी रहे जूबाँ भी फिर, होता न दिल यूँ खार तो ! कुछ कर तलातुम का हिसाब, कर फिर सफ़ीना पार तो ! नीशीत जोशी 'नीर'

वाह वाही

रू ब रू होने लगी थी वाह वाही, चश्म तब ढोने लगी थी वाह वाही ! रात उनके ख्वाब भी आने लगे थे, नींद में खोने लगी थी वाह वाही ! हाज़री दी जब ग़रूर को भूल कर तब, फूट कर रोने लगी थी वाह वाही ! चाँद शरमाया तुझे ही देखकर जब, फर्श पर होने लगी थी वाह वाही ! दर्द को मैंने वरक़ पर जब उतारा बज़्म में होने लगी थी वाह वाही ! नीशीत जोशी 'नीर'

क्यों वो अपनी नजर फिर बचाते रहे ?

212/212/212/212 क्यों वो अपनी नजर फिर बचाते रहे ? खुद को क्यों आइने से छिपाते रहे ? एक खता ही तो थी जो हुई थी कभी, क्यों सरेआम सब को बताते रहे ? दिल किया है तुम्हारे हवाले मेरा, फिर भी तडपा के उसको रुलाते रहे ! इश्क को ज़ुर्म माना था तुमने कभी, ज़ुर्म करने मुझे क्यों बुलाते रहे ? फैसला था ये कुदरत का फिर क्यों मुझे, ज़िक्र तुम बेवफा का सुनाते रहे ! इश्क में हिज्र होना तो तय था मगर, अश्क़ आँखों से फिर भी बहाते रहे ! सामना जब हुआ मेरा दिलबर से तो, उनको इलज़ाम ही हम सुनाते रहे ! है भरोषा तो बस उस खुदा पर मुझे, दर्द को 'नीर' दिल में दबाते रहे ! नीशीत जोशी 'नीर'

होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया

तीरगी लेने तुम्हारी मैं उजाला बन गया, फिर चुरा कर अश्क सारे मैं फसाना बन गया ! नाम जो बदनाम था पहले वो बातें अब नहीं, मैं तुम्हारे इश्क़ में पागल दिवाना बन गया ! देखना लहरों की ओर अच्छा लगा इतना मुझे, मैं उन्हे पाने को दरया का किनारा बन गया ! इक मुनाज्जिम ने कहा तन्हा रहोगे तुम सदा, तबसे तन्हाई से मेरा राब्ता सा बन गया ! महफिलों में रिंद सब मदहोश थे पी कर शराब, होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया ! नीशीत जोशी (तीरगी - अंधेरा,मुनज्जिम- ज्योतिषी,रिंद- शराबी)

सोचना मत और रोना मत अब

सोचना मत और रोना मत अब, रात तन्हा हो तो सोना मत अब ! प्यार तरदीद कर दिया जब तुमने, दिल तुम्हारा तुम तो खोना मत अब ! लोग दीवाने हुए जाते है, नफ़रतों का बीज़ बोना मत अब ! प्यार की कोई करे तनक़ीद भी, पर कहीँ ये इश्क़ खोना मत अब ! तुम मिरे हो फिर मिरे ही रहना, और तुम कोई के होना मत अब ! नीशीत जोशी (तरदीद=रद्द करना, तनक़ीद=आलोचना)

बज़्म में तीरगी का है आलम

2122-1212-22 जब उसे प्यार याद आता है, गीत मेरे वो गुनगुनाता है ! हिज्र का जिक्र आ गया होगा, सुन उसीको वो तिलमिलाता है ! बागबाँ है रुठा ऱुठा जब से, फूल भी खिल कहाँ तो पाता है ! हम रहें सामने उन्ही के ही, पर वो दूरी सदा बनाता है ! शह्र खामोश है, मैं हूँ तन्हा, ग़म भी दर्द अब बढाता है ! मंज़िलें और तो रही होगी, कौन अब वो उफ़क दिखाता है ! बज़्म में तीरगी का है आलम, 'नीर' ही दिल यहाँ जलाता है ! नीशीत जोशी 'नीर'

रवायत तो कुछ निभायेगी

1212-1122-1212-22 वो बेवफा हैै,रवायत तो कुछ निभायेगी, लगा के दिल वो मेरा प्यार तो बढायेगी! कहाँ कहाँ मैं तो भटका उन्हे ही पाने को, किसे कहूँ कि वो हर राह में सतायेगी! दिवानगी कि भी हद पार करके देखा जब, पता न था कि मुहब्बत मुझे रुलायेगी! न कोई प्यार करेगा उसे मेरे जैसे, उसे भी वस्ल कि बातें तो याद आयेगी! कभी उसे भी सजा प्यार में मिलेगी यूँ, कि फिर उसे भी वो हर शब सदा जगायेेगी! रही न कोई चरागों कि रोशनी वो जब, वो महफिलों में पढी फिर भी नज़्म जायेगी! अभी तो घाव नया फिर दिया गया दिल को, ये दिल के दर्द से अब 'नीर' को जलायेगी ! नीशीत जोशी 'नीर'

प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं

2122-2122-2122-212 क़त्ल करते थे वो आँंखो से मगर क़ातिल न थे, प्यार करते थे उन्हे हम उसमें तो गाफ़िल न थे ! खो रहे थे इंतजारी के तसव्वुर में कभी, प्यार की वो गुफ्तगू से हम भी क्या कामिल न थे ? लग रहा है अब समुन्दर भी अकेला क्या वहाँ, इश्क़ करती उन लहेरें और क्या साहिल न थे ? अब तो दिल की बेकरारी बढ गयी है प्यार में, इल्तज़ा हमने रखी ख़त की मगर हामिल न थे! माँगने से प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं, प्यार के क़ाबील अब कोई भी नादाँ दिल न थे ! नीशीत जोशी 'नीर' (गाफ़िल - असावधान, कामिल - पूरा जानकार, साहिल - किनारा, हामिल - समाचार ले जानेवाला)

काश कोई ख़्वाब लिखते,

2122-2122 काश कोई ख़्वाब लिखते, ख़्वाब में अहबाब लिखते ! करके तुम दीदार दिलबर, फिर उसे महताब लिखते ! अश्क से भर जो गया दिल, भूल कर सब, आब लिखते ! हो कहानी में जगह तो, इश्क का एक बाब लिखते ! रह नहीं सकते अकेले, प्यार में बेताब लिखते ! जब्त में जज्बात हो फिर, आ रहा शैलाब लिखते ! है सुख़नवर 'नीर' तो फिर, कुछ ग़ज़ल नायाब लिखते ! नीशीत जोशी 'नीर'