રવિવાર, 6 જૂન, 2010
पीने से शराब
नशा तो खुब चडा पीने से शराब,
बेकाबु हो गये पीने से शराब,
दर्द घावो का बढने लगा त्वरीत,
याद वोह ज्यादा आये पीने से शराब,
मुश्कान ने मुह मोड लिया,
न रोक पाये अश्रु पीने से शराब,
महोब्बतकी पीडा दोहराने लगी,
भुली रंजीसे आयी सामने पीने से शराब,
पांव वहीं गया छोड चुके थे जो राह,
भटकते रहे उसी राहोमें पीने से शराब,
कहना तो बहोत था पर बहक गये,
लब्ज भी चूप हो गये पीने से शराब,
जताया होता पहले ही दिन हक 'निशीत',
कब्रमे आज न होते सजे पीने से शराब ।
निशीत जोशी
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