રવિવાર, 12 માર્ચ, 2017

कोई ठोकर लगी है क्या ?

221-2121-1221-212 दुनिया के खत्म होने की आयी घडी है क्या ? ग़ैरत की शम्आ चारों तरफ बुझ गयी है क्या ? हर सिम्त कत्ल ओ खून का मंजर गवाह है, शैतान से भी बढ के नहीं आदमी है क्या ? मज़हब के नाम पर जो लडाते हैं हर जगह, खुद उन से पूछिए के यही बंदगी है क्या ? अपने तमाम फर्ज शनाशी को छोड कर, बेफिक्र जिंदगी भी कोई जिंदगी है क्या ? कुछ पल की जिंदगी है, मुहब्बत से जी ले यार, नफरत में कोई एक भी सच्ची खुशी है क्या ? कल तक तो हँस रहे थे ज़माने पे तुम निशीत, संजीदा आज हो, कोई ठोकर लगी है क्या ? निशीत जोशी (ग़ैरत = शर्म ओ हया, फर्ज शनाशी= फर्ज की समझ)

अपनों को भुला डाला है दौलत की हवस ने

221-1221-1221-122 इंसान तो है सब कोई दिलदार नहीं है, ये शह्र है कैसा की यहाँ यार नहीं है, अपनों को भुला डाला है दौलत की हवस ने, रिश्ते हैं ज़रूरत पे टिके, प्यार नहीं है, महफिल में सुनी सब की ग़ज़ल हमने भी लेकिन, इस बज्म में तुम सा कोई फनकार नहीं हैं, ये अब के बरस कैसी हवा आयी चमन में, गुलशन तो कोई इक भी गुलजार नहीं है, तुम दिल को कभी चोट न पहुंचाओ मेरे दोस्त, ये फूल सा नाज़ुक है कोई खार नहीं है ! नीशीत जोशी

जिंदगी फिर मुझे क्यों डराती रही

जान जाती रही,रात आती रही, याद आ कर मुझे फिर सताती रही, जब्त जज्बात थे,चुप रहे लब मेरे, आँख ही थी जो सब कुछ बताती रही, आजमातेे रहे इश्क को इस कदर, जिंदगानी मेरी लडखडाती रही, तुम बने फूल तो मैं भी भँवरा बना, तुम मुझे बागबाँ फिर बनाती रही, रो पडा आसमाँ दास्ताँ सुन तेरी, फर्श पे फिर कयामत वो ढाती रही, मैंने दे कर खुशी ले लिये सारे ग़म, जिंदगी फिर मुझे क्यों डराती रही, चेहरे पे खुशी और दिल में थे ग़म, बेबसी 'नीर' का दिल जलाती रही ! नीशीत जोशी 'नीर'

सहारा तो बने कोई

बुराई ही करे कोई, मगर सच तो कहे कोई। मुहब्बत देख कर अपनी, जो जलता हो, जले कोई। मुहब्बत एक दरिया है कोई डूबे , तरे कोई। इलाजे इश्क़ मुमकिन है अगर दिल में बसे कोई ! अंधेरो के सफ़र में भी, मेरा साथी बने कोई ! बिछे हैं राह में काँटे भला कैसे चले कोई ! हमेशा मुन्तज़िर है 'नीर', सहारा तो बने कोई। नीशीत जोशी 'नीर'

अल्फाज़ मिट रहे हैं जो मेरी क़िताब से

221 2121 1221 212 अल्फाज़ मिट रहे हैं जो मेरी क़िताब से, किसने जगा दिया है मुझे मेरे ख़्वाब से ! बोला अभी नहीं था वो मेरे मुहिब्ब को, किसने बताया क्या पता है किस हिसाब से ! आते रहे खयाल सताने मुझे यहाँ, किसको कहें बचाये मुहब्बत के ताब से ! रहते नहीं निशाँ कभी वो रेत पे यहाँ, चाहे रखे कदम वहाँ जो हों गुलाब से! बातें अभी हुई थी ज़रा प्यार की शुरू, किस रश्क ने जगा दिया है आज ख्वाब से ! किसने सुना वो ज़ख्म का कितना है दर्द अब, देकर मुझे वो ज़ख्म नवाजा खिताब से ! वाईज़ कह दिया है वो खामोश 'नीर' को, बहते हुए वो अश्क़ को कहते है आब से ! नीशीत जोशी 'नीर'

हाथ बटाना तो चाहिए

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221-2121-1221-212 रूठे को एक बार बुलाना तो चाहिए, शिकवे गिले को दिल से मिटाना तो चाहिए ! इक दूसरे के ग़म को हमें बाँटकर यहाँ, इंसानियत का कर्ज चुकाना तो चाहिए ! खामोशियाँ ही तेरी रुकावट है राह में, जब हो गया है प्यार जताना तो चाहिए ! जाने बग़ैर कैसै भला साथ देते हम, क्या झूट और सच है बताना तो चाहिए ! उड जाएगा कफ़स को परिन्दा ये तोड कर, मालूम उसका हौसला होना तो चाहिए ! माँ बाप तो ज़ईफ हैं अब उनके काम में, ए 'नीर' तुझको हाथ बटाना तो चाहिए ! नीशीत जोशी 'नीर' (ज़ईफ - कमज़ोर)