શનિવાર, 1 નવેમ્બર, 2014

साँसे बरक़रार रखता है

जिगर हमारा, फौलादी मिज़ाज रखता है, आँखों से बहता सैलाब भी, बाँध रखता है !! लगने नहीं देता चोट, पहला ग़म का बख्तर, नये घाव के आगे, पुराने ज़ख्म याद रखता है !! दे करके बेवफाई को, कोई मजबूरी का नाम, बचा के बदनामी से, मुहिब्ब की लाज़ रखता है !! हो जाता है शादाँ, जुगनू की रोशनी से भी, देने तस्सली, घर में बुज़ा चराग रखता है !! क़ायम है, मुहब्बत का वो जज्बा ऐसा की, लाश बन कर भी साँसे बरक़रार रखता है !! नीशीत जोशी (शादाँ=happy) 31.10.14

મહોબ્બત તેને પણ હતી

જોયું પાછળ વળીને તેણે, હસરત તેને પણ હતી, થયા'તા જેના પર ફના, મહોબ્બત તેને પણ હતી, દફનાવી દીધી'તી, મનની ઈચ્છાઓને મન માં જ, રીવાજો થકી, જમાના ઉપર નફરત તેને પણ હતી, જોયા વગર દિન પણ કાઢવો મુશ્કેલ હતો, બંનેનો, કરીએ છીએ પ્રેમ અપાર, એ ધરપત તેને પણ હતી, વિખુટા પડ્યાની પળો, કરી યાદ રડતા હતા હમેંશા, આશા હતી, પ્રેમ માં આવશે બરકત, તેને પણ હતી, મેળવતા હતા નજરો, છુપાઈ છુપાઈને જમાના થી, શરમાઈ, નયનો ઝૂકાવવાની ચાહત તેને પણ હતી. નીશીત જોશી 28.10.14

पैगाम न आया

उनका कोई पैगाम न आया, दिल का तड़पना काम न आया, निभा न पाये वोह आने का वादा, फिर भी उनपे कोई इल्ज़ाम न आया, रेज़ा रेज़ा कर दिया आईने को, मगर कहीं उनका नाम न आया, मुन्तज़िर ये दिल भी थक गया, कहीं से भी उनका सलाम न आया, कट जाती है करवटों में नींद भी, उनका कोई ख्वाब आम न आया !!!! नीशीत जोशी 26.10.14

ग़ज़ल बन गयी

तसव्वुर में याद आते ही ग़ज़ल बन गयी, दास्ताँ तेरी गुनगुनाते ही ग़ज़ल बन गयी, वरक़ पे क़लम ने बखूबी अपना काम किया, खून को स्याही में पाते ही ग़ज़ल बन गयी, हवा से उड़ते पन्नो से निकल पड़ा तरन्नुम, हवा के ज़ोकों के जाते ही ग़ज़ल बन गयी, छाया हुआ था सन्नाटा यूँह तो महफ़िल में, तेरे आने की खबर आते ही ग़ज़ल बन गयी, अल्हान के शौकीन हो यह मालूम था हमे, मुतरिब के रबाब बजाते ही ग़ज़ल बन गयी, तेरे नाम का जाम पीने की तिश्नगी बढ़ती रही, खुम को मुहँ तक लाते ही ग़ज़ल बन गयी !!!! नीशीत जोशी 19.10.14 (अल्हान= melodies, मुतरिब= singer, रबाब= a kind of violin, खुम= large jar of wine)

उनके पास वफ़ा का हुनर न था

हमारी उदासी से वोह बेखबर न था, पर उनके पास वफ़ा का हुनर न था !! डूब तो जाता वोह भी तन्हाई में पूरा, हमारे जैसा प्यार गहरा मगर न था !! हमराही समझ कर हम साथ हो लिए, हमारे साथ उनका मसरूर सफर न था !! बैठते दो पल तो शायद कुछ बात होती, कुछ सुनने का उनको तो सबर न था !! मुन्तज़िर रखा हरदम प्यार जता के, पर हालात का उन पे कोई असर न था !! नीशीत जोशी 15.10.14

એક દી'

chagall_flight પાંખ ફેલાવી ઉડ્યા'તા એક દી', એકબીજાના બન્યા'તા એક દી', વીતી ગયા એ દિવસો સુહાના, અજાણતા જ મળ્યા'તા એક દી', નામ લેતા થોથવાય જીભ આજે, દિનરાત જેનું લેતા'તા એક દી', તેની તો ખબર નથી અત્યારની, અમારાથી નથી ભૂલા'તા એક દી', બીજાના નામની લગાવી મહેંદી, અમ માટે જ જે જન્મ્યા'તા એક દી'. નીશીત જોશી 12.10.14