રવિવાર, 23 એપ્રિલ, 2017

क्या करे कोई !

221-2121-1221-212 अब क्या किसी के इश्क का दावा करे कोई, करता नही है कोई कि चर्चा करे कोई ! क्या जुर्म है ये इश्क?करो सात जन्म तक, चाहे सता सता के भी रूठा करे कोई! आँधी से भी चराग बुझाये न अब बुझे, फिर महफिलो में क्यों सर नीचा करे कोई ! हर वस्ल बाद हिज्र का होना तो तय है तब, फिर वस्ल का भी क्यों तो ये वादा करे कोई ! जिन्दा रखे है घाव, दिखाए किसे किसे, बँधे तबीब के हाथ यहाँ, क्या करे कोई ! नीशीत जोशी

इश्क में कुछ तो अलामत ही सही

इश्क में कुछ तो अलामत ही सही, कुछ नहीं है तो अदावत ही सही ! हो तुझे परहेज़ गर फिर झूठ से, गुफ्तगू में तब सदाकत ही सही ! आ नहीं सकते वो अब जब वस्ल पर, दरमियाँ है ग़म,फलाकत ही सही ! खुश रहे नाराज हो कर हम बहुत, कुछ हमारी ये अलालत ही सही ! बज़्म में खामोश हैं ये सोच कर, कुछ तसव्वुर में बगावत ही सही ! शायरी की साहिरी तुम सीख लो अब, महफिलों में फिर वो दावत ही सही ! है तलातुम इस जहन में क्या करें, हिज्र का दिल में दलालत ही सही ! नीशीत जोशी (अलामत-sign,अदावत-hatred, सदाकत- true,फलाकत-misfortune,अलालत-sickness, साहिरी-जादूगरी, दलालत-proof)

तीर जब रोज़ चल रहें हैं अब

जब मुहब्बत में दर्द पाना है, किस लिए दिल यहां लगाना है ! इम्तिहाँ प्यार की कहाँ तक दें, जब सवालों में ही फसाना है ! पी लिया जह्र सोचकर ये जब, मौत ही आखरी ठिकाना है ! रातभर चैन से जो सोते हो, ख्वाब अक्सर मेरे ही आना है ! बेवफा तुम नहीं तो क्या हो फिर, वो खयानत भी क्या बहाना है ? करते हो प्यार जब मुझे तुम तब, शर्म में वक्त क्यों गवाना है ? तीर जब रोज़ चल रहें हैं अब, हर नया घाव 'नीर' खाना है ! नीशीत जोशी 'नीर'

और क्या क्या ?

प्यार यादें फिर वफा है और क्या क्या ? शाम की ये सब दवा है और क्या क्या ? राज़ तो है इस सुखन के कुछ मेरे भी, उसमें वादे है जफ़ा है और क्या क्या ? अश्क बहते है यहाँ आँखो से फिर अब, ये जिगर भी सह रहा है और क्या क्या? गुल के ही मानिंद तो सीखा था जीना, ये अदा है या खता है और क्या क्या ? अब नहीं कोई किसी का है यहाँ पर, बस बची ये तेरी दुआ है और क्या क्या ? कारवाँ तो बन गया था उस सफर में, अपनी मंजिल लापता है और क्या क्या ? तीरगी में ही कटी जब 'नीर' हर शब, ख्वाब भी तेरा खफा है और क्या क्या ? नीशीत जोशी 'नीर'

दौर-ए-हाजिर की ये कहानी है!

क्या यही इश्क की निशानी है, हुस्न उस में है और जवानी है! है मुहब्बत में अब हवस दाखिल, दौर-ए-हाजिर की ये कहानी है! इश्क में नाम उसका भी है आज, जिसने सहरा की खाक छानी है! सच बताने की है कहाँ हिम्मत, हार को जीत अब बतानी है! देखकर ज़ुल्म दिल नहीं रोता, आजकल खून भी तो पानी है! कुछ तो ऐसे हैं जो खिजाँ में भी, कहते फिरते हैं रुत सुहानी है! जिंदगी में खुशी है ग़म भी 'नीर', ये कहावत बहुत पुरानी है ! नीशीत जोशी 'नीर'

दर्द के कोई बहाने यूँ न होते !

2122-2122-2122 तेरी दुन्या के दिवाने यूँ न होते, महफिलों में वो तराने यूँ न होते ! ये तमाशा भी न होता प्यार का तब, बाद मरने फिर शयाने यूँ न होते ! प्यार से तो बेखबर था मैैं उन्हीके, जानते गर मुझ पे ताने यूँ न होते ! दीद से मिलती खुशी मुझको अगरचे, दिलशिकस्ता के ये माने यूँ न होते ! बात हो जाती मेरी तुझसे उसी दिन, दर्द के कोई बहाने यूँ न होते ! नीशीत जोशी

जिंदगी पल पल हँसाती ही रही

2122-2122-212 जिंदगी पल पल हँसाती ही रही, प्यार में जीना सिखाती ही रही ! मौत आती है बिना दस्तक दिये, सोच उसकी पर डराती ही रही ! खोजते ही रह गये हम शाद पल, याद आ कर फिर सताती ही रही ! मेरी तन्हाई बदौलत है तेरे, शाम डर से मूँह छिपाती ही रही ! वो कभी तो प्यार कर लेगा मुझे, इल्तज़ा दिल को लुभाती ही रही ! भूलना आसाँ नहीं होता कभी, बात वो यादें दिलाती ही रही ! महफिलों में 'नीर' का अब क्या रहा, वो ग़ज़ल सब कुछ बताती ही रही ! नीशीत जोशी 'नीर'

हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए !

२१२२ २१२२ २१२ वो कभी तन्हा सफर में खो गए, कैद फिर मेरे तसव्वुर हो गये ! तोडकर दिल फिर सुकूँ उनको मिला, देख सादाँ हम उसे खुश हो गए ! वस्ल की उम्मीद उसने छोड़ दी, हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए ! शाम तन्हा रात भी खामोश थी, ख्वाब ने ओढा फलक फिर सो गए ! मुद्दतो से वो रहे खामोश पर, गुफ्तगू को *बेबहा लब हो गए ! *बहुमूल्य नीशीत जोशी

मैं जो मरता हूँ, मरोगे तुम भी क्या?

2122-2122-212 प्यार है तुमसे, करोगे तुम भी क्या? मैं जो मरता हूँ, मरोगे तुम भी क्या? बेवफा तुम हो नहीं सकते कभी, खुदकुशी से अब, डरोगे तुम भी क्या? मत झुको तुम, नफरतो के सामने, प्यार में लेकिन, झुकोगे तुम भी क्या? हौसला है, तो बुलंदी कुछ नहीं, गर मिले तो, रख सकोगे तुम भी क्या? तू नहीं, यादें सताती है तेरी, दिल की वीरानी, सहोगे तुम भी क्या? आ गया, वादा निभाने का ही पल, गुफ्तगू करने, रुकोगे तुम भी क्या? रातभर जागा रहा, दिल 'नीर' का, दूर करने ग़म, उठोगे तुम भी क्या? नीशीत जोशी 'नीर'