રવિવાર, 11 મે, 2014

मुझे याद आया

1977065_706996112686053_251850019_n किताबो मे रखा एक गुलाब मुजे याद आया, सवालो में उलझा एक जवाब मुझे याद आया, पत्तो के बीच छुपा के रखा था जो चहेरा तूने, दाँतो तले उंगली का हिजाब मुझे याद आया, शाम होते ही मेरे इन्तजार में झरोखो पे आना, देखके मुश्कुराने का दिया खिताब मुझे याद आया, करवटे बदलते हुए निकालनी पड़ी थी कई राते, तन्हा चलता फलक का महताब मुझे याद आया, मुरझाया हुआ गुलाब भी मौजूद है किताब में, बीती हुई कई बहारो का हिसाब मुझे याद आया !!!! नीशीत जोशी 24.04.14

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