अमां पहले मुहब्बत कर,
गजल की फिर इबारत कर !
मेरे दिल में तू रह बेशक,
मगर कुछ तो शराफत कर !
कभी आ कर मुझे बहला,
कभी तू भी शरारत कर !
तुझे ही दिल दिया मैंनें,
उसे रखना अमानत कर !
रहूँ खुश दोस्ती से मैं,
न देकर ग़म अदावत कर !
नीशीत जोशी
(इबारत=composition,अदावत= दुश्मनी)
રવિવાર, 20 નવેમ્બર, 2016
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