રવિવાર, 20 નવેમ્બર, 2016
यह ग़ज़ल ही जिंदगी का सार है
2122-2122-212
यह ग़ज़ल ही जिंदगी का सार है,
जीत ली थी वो मगर अब हार है !
वो मंजर तो इस समंदर पार है,
अब सफीना भी मेरा मझधार है !
है बहुत साथी मगर कबतक मेरे,
कुछ भी कहने पर दिखे अग़्यार है !
बदसलूको की गुलामी क्यों करें,
वो है ही जबतक उसे दरकार है !
अब नये ग़म और आँसू भी नये,
जिंदगी जीना मेरा दुश्वार है !
देख कर तुम आइना डर क्यों गये,
चेहरा तो रोज का फनकार है !
प्यार को मौजूद अंदर ही रखा,
'नीर' का तो बस यही असरार है !
नीशीत जोशी 'नीर'
(अग़्यार=strangers,rivals
असरार=secret)
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