રવિવાર, 20 નવેમ્બર, 2016

वो आ के बज़्म में, अपनी ग़ज़ल सुनाने लगे !

1212-1122-1212-22/112 वो आ के बज़्म में, अपनी ग़ज़ल सुनाने लगे ! इसी बहाने, मुहब्बत मुझे जताने लगे ! मैं अपना दिल ही, मुहब्बत में जिन को दे बैठा , सितम तो देखए, दामन ही वो बचाने लगे ! यकीन कीजिए, सब पेड़ कट गया होगा , परिंदे परदे पे, जब घोंसले बनाने लगे ! चली भी आओ, ज़रा बाम पर मिरी खातिर , फलक का चाँद, न मुझ को कहीं सताने लगे ! तमाम राहों को, फूलों से भर दिया जिन की , हमारी राह में, कांटे वही बिछाने लगे ! नीशीत जोशी

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