શનિવાર, 4 ઑક્ટોબર, 2014
इन्तजार ने जाँ निकाली हुयी है
ऐसी तो मेरी बहाली हुयी है,
रात हर मेरी काली हुयी है,
इश्क़ ने किया है निक्कमा,
दीवानगी वो संभाली हुयी है,
साइल बन के गुजारिश की,
रूह उसकी कंगाली हुयी है,
उठे भी तो कैसे महफ़िल से,
निगाहें मुझ पे डाली हुयी है,
कह कर भी नहीं आते कभी,
इन्तजार ने जाँ निकाली हुयी है !!!!
नीशीत जोशी
(साइल= a beggar) 03.10.14
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