શનિવાર, 11 ઑક્ટોબર, 2014
उनकी यादें जुबाँ खुलने नहीं देती
आँखे अश्को को गिरने नहीं देती,
दिल की दास्ताँ कहने नहीं देती,
जीना पड़ता है उनके बगैर अब,
उनकी वो क़सम मरने नहीं देती,
खामोशी अपने पायाँ पे आ गयी,
उनकी यादें जुबाँ खुलने नहीं देती,
तड़पते है मुद्दत से दीदार के लिए,
रवायत परदे को हटने नहीं देती,
मुन्तज़िर है बागो के वो शजर भी,
बहार भी फूलो से सजने नहीं देती !!!!
नीशीत जोशी 10.10.14
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