શનિવાર, 4 ઑક્ટોબર, 2014
ऐसी तो न थी
गूंगी थी, मगर वो बात, ऐसी तो न थी,
आँखों से हुई, वो बरसात, ऐसी तो न थी,
तबस्सुम ने, बाँध रखा था, महफ़िल में,
जश्न में, जो गुजारी रात, ऐसी तो न थी,
चश्म-बरा में, उलजे रहे हम यूँ ही,मगर,
कसक से, जो हुयी नजात, ऐसी तो न थी,
खेलते रहे बाज़ी, उनकी ही, ख़ुशी के लिए,
वो, जीती बाज़ी की मात, ऐसी तो न थी,
कह के नागवार, कर दिये जख्म, हर शब्ज,
नासूर, घावों की सबात, ऐसी तो न थी !!!!
नीशीत जोशी
(तबस्सुम= smile , चश्म-बरा= waiting to welcome, नागवार= unpleasant, unbearable, सबात= stability) 28.09.14
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