રવિવાર, 17 એપ્રિલ, 2016

चहेरा भी तेरे दीदार से

बैठो मेरे पहलू में आ कर,वक़्त ठहर जाएगा, बादा का चढ़ा नशा भी लामुहाला उतर जाएगा, शोखियाँ तेरे हुस्न की लाती है क़यामत सब पे, तेरे बदन की खुश्बू से चमन भी सवर जाएगा, मुब्तिला-ए-इश्क़ खड़े मिलेंगे तेरे दर पे अक्सर, तिश्नगी मिटाने सारा समंदर भी बिखर जाएगा, महक उठेगी फ़िज़ा भी तेरी एक मुस्कुराहट पे, आलम-ए-हसीं-मंजर निगाहो में बसर जाएगा, माहजबीं हो, नाज़नीन हो, हमनफ़स भी तुम, जानकाह चहेरा भी तेरे दीदार से निखर जाएगा ! नीशीत जोशी (लामुहाला= जरूर, मुब्तिला-ए-इश्क़= इश्क करने वाला, आलम-ए-हसीं-मंजर= नयनाभिराम दृश्य के क्षण, जानकाह= उदास) 01.04.16

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