રવિવાર, 20 નવેમ્બર, 2016
पैसा कहीं काला नहीं होगा
वो पहले था जो कारोबार अब वैसा नहीं होगा,
तिजारत तो सही पैसा कहीं काला नहीं होगा !
यहाँ हर आदमी हैरां है अपने मुल्क का यारों,
परेशानी बढा कर खुद कभी महंगा नहीं होगा !
हरारत में उठा होगा कदम बक्सा न जायेगा,
कहीं तो हो गये है नामज़द ऐसा नहीं होगा !
रहो खुद साफ तो कोई बिगाडेगा नहीं कुछ भी,
लिबास-ए-जि़न्दगी फट जाएगा मैला नहीं होगा !
मगर कोॆई कहाँ सुनता किसीकी है यहाँ अब तो,
यही सब सोचते है की कभी चरचा नहीं होगा !
नीशीत जोॆशी
( नामज़द = प्रसिद्ध)
पहले मुहब्बत कर
यह ग़ज़ल ही जिंदगी का सार है
2122-2122-212
यह ग़ज़ल ही जिंदगी का सार है,
जीत ली थी वो मगर अब हार है !
वो मंजर तो इस समंदर पार है,
अब सफीना भी मेरा मझधार है !
है बहुत साथी मगर कबतक मेरे,
कुछ भी कहने पर दिखे अग़्यार है !
बदसलूको की गुलामी क्यों करें,
वो है ही जबतक उसे दरकार है !
अब नये ग़म और आँसू भी नये,
जिंदगी जीना मेरा दुश्वार है !
देख कर तुम आइना डर क्यों गये,
चेहरा तो रोज का फनकार है !
प्यार को मौजूद अंदर ही रखा,
'नीर' का तो बस यही असरार है !
नीशीत जोशी 'नीर'
(अग़्यार=strangers,rivals
असरार=secret)
हर तरफ चर्चा रहा अपनी मुहबब्त का
2122 2122 2122 212
आते जाते आईने से गुफ्तगू होती रही,
फिर मुहब्बत की मुझे बस आरजू होती रही !
प्यारका मुझपे वो जादू इस कदर छाया कि बस,
आप से तुम और तुम से फिर वो तू होती रही !
वस्ल की कोई खुशी मुझको नही होगी यहाँ,
हिज्र की जबसे मुझे तो साद खू होती रही !
खत लिखा था और भेजा भी नहीं मुझको कभी,
काशिदो की बात से अब ये सबू होती रही !
हर तरफ चर्चा रहा अपनी मुहबब्त का मगर,
दोस्त सब नाराज,आँखें भी अदू होती रही !
नीशीत जोशी
(खू =आदत,सबू =सबूत,अदू = दुश्मन)
कभी हम भी मनाते थे
1222-1222-1222-1222
मेरा बचता नहीं कुछ भी, मुहब्बत की कहानी में,
मुझे सब सोंप कर, सूरज उतर जाता है पानी में !
जलाकर राख कर दे गर, मेरे वो अक्स अब सारे,
मगर उनको रखूंगा बस, मेरे दिल की निशानी में !
नये किस्से अधूरे ही रहेंगे, अब यहाँ सुनलो,
भरा है दर्द इतना वो, मेरी यादें पुरानी में !
फिज़ा भी प्यार की दोस्तो, न पहले सी यहाँ है अब,
मजा तो तब मिला था, वो मुझे अपनी जवानी में !
हमारे प्यार के किस्से, कभी मशहूर थे फिर भी,
भुली दास्ताँ सुनाते है, तुझे अपनी जुबानी में !
कभी तुमने मनाया था कभी हम भी मनाते थे,
मुहब्बत आजमाते थे तभी दिलकश रवानी में !
निशीत जोशी
दिल भी बेचैन सा लगे हर पल
2122-1212-22
जब किसी से वो प्यार होता है,
प्यार फिर बेशुमार होता है !
तेरी आँखें कभी नही रोयी,
प्यार में आबशार होता है !
दिल दिया तब तो बेखबर थे हम,
दिल पे कब अख्तियार होता है !
दिल भी बेचैन सा लगे हर पल,
वस्ल को बेकरार होता है !
टूट जाए जो दिल, लिए ग़म को,
आदमी तार तार होता है !
नीशीत जोशी
(आबशार= waterfall)
वो आ के बज़्म में, अपनी ग़ज़ल सुनाने लगे !
1212-1122-1212-22/112
वो आ के बज़्म में, अपनी ग़ज़ल सुनाने लगे !
इसी बहाने, मुहब्बत मुझे जताने लगे !
मैं अपना दिल ही, मुहब्बत में जिन को दे बैठा ,
सितम तो देखए, दामन ही वो बचाने लगे !
यकीन कीजिए, सब पेड़ कट गया होगा ,
परिंदे परदे पे, जब घोंसले बनाने लगे !
चली भी आओ, ज़रा बाम पर मिरी खातिर ,
फलक का चाँद, न मुझ को कहीं सताने लगे !
तमाम राहों को, फूलों से भर दिया जिन की ,
हमारी राह में, कांटे वही बिछाने लगे !
नीशीत जोशी
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