રવિવાર, 23 ઑક્ટોબર, 2016

वस्ल का वादा नहीं हुआ

२२१ २१२१ १२२ १२१२ इतना शदीद ग़म का अँधेरा नहीं हुआ, साथी बने बहुत पर तुमसा नहीं हुआ, हमने बना लिया वो घरोंदा यहीं कहीं, फिर भी सुकूँ मिले वो बसेरा नहीं हुआ, एक तुम मिले हमें,वो खुशी भी रही सदा, फिर दिल किसी मुहिब्ब का प्यासा नहीं हुआ, बढते रहे कदम, पुरजोशी रही मेरी, दिल में मगर सफर का सवेरा नहीं हुआ, जज्बात जब्त में रखकर हम रुके रहे, वो हिज्र में भी वस्ल का वादा नहीं हुआ ! नीशीत जोशी 21.10.16

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