શનિવાર, 1 નવેમ્બર, 2014
पैगाम न आया
उनका कोई पैगाम न आया,
दिल का तड़पना काम न आया,
निभा न पाये वोह आने का वादा,
फिर भी उनपे कोई इल्ज़ाम न आया,
रेज़ा रेज़ा कर दिया आईने को,
मगर कहीं उनका नाम न आया,
मुन्तज़िर ये दिल भी थक गया,
कहीं से भी उनका सलाम न आया,
कट जाती है करवटों में नींद भी,
उनका कोई ख्वाब आम न आया !!!!
नीशीत जोशी 26.10.14
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