મંગળવાર, 15 ડિસેમ્બર, 2015

कभी ऐसा भी तो हो.....

कभी ऐसा भी तो हो..... तुम्हारी सुबह मुझसे हो तुम्हारी बाँहों में हम हो तुम जगाओ गोसा दे के मेरा लम्हा खुशनुमा हो कभी ऐसा भी हो.... तुम पुकारो मुझे, पास आ जाउँ मैं गुफ्तगू करें सारी, मुकम्मल प्यार हो कभी ऐसा भी हो..... जो पकडु दूपट्टे का कोना मैं, छुडाने की कोशिश करो तुम, लाल कमल सी खिल जाओ, वो चेहरा तुम्हारा शर्मशार हो कुछ ऐसा भी हो..... तुम मेरी धडकनो में समाओ, तेरी मैं हर धडकन बन जाउँ, जिंदगी जीएँ कुछ इस तरह, अपनी हसद जमाने को हो कुछ ऐसा भी तो हो ....... नीशीत जोशी 11.12.15

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