શનિવાર, 23 જુલાઈ, 2016
हमें दिल लगाने कि फुर्सत कहाँ है
१२२ १२२ १२२ १२२
कहाँ है कहाँ है फसाहत कहाँ है,
कभी नाम था अब वो ग़ीबत कहाँ है,
तुम्हारी हमारी मुहब्बत कहाँ है,
हमें तू बता वो अलामत कहाँ है,
गुजारी जो हमने तुम्ही अब बतादो,
वो अब दरमियाँ सब अक़ीदत कहाँ है,
नहीं है फ़राग़त तुम्हे क्या करे हम,
हमें दिल लगाने कि फुर्सत कहाँ है,
कभी दे दिया था तुम्हे 'नीर' तौफा,
हमें अब बता वो अमानत कहाँ है !
नीशीत जोशी 'नीर' 14.07.16
(फसाहत= purity of language, ग़ीबत= slander, अलामत= sign, अक़ीदत= faith, belief, फराग़त=leisure)
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