શનિવાર, 23 જુલાઈ, 2016

न कोई आरजू है अब,न कोई जुस्तजू है अब

न कोई आरजू है अब,न कोई जुस्तजू है अब, तेरी हरएक अदा जैसे नजर की साद खू है अब, न कोई हादसा होगा,न कोई रूसवा होगा, तेरा दीदार ही तो इस शहर का सब वकू है अब, यहां तो इश्क़ के फरजंगी नदारद हो गए है सब, न कोई अब सुनेगा भी, न कोई गुफ्तगू है अब, मेरे दिल का यहां बेहाल हुआ जाता दिखा है,पर, न आँखों से मेरी बहती, वो कोई आबजू है अब, अंधेरो से मुझे अब डर नहीं कोई मेरे घर में, चिरागो का वहाँ होना भी उसीका अदू है अब ! नीशीत जोशी (खू=habit,वकू=happening, फरजंगी=wisdom,आबजू=rivulet, अदू=enemy) 21.07.16

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