શનિવાર, 23 જુલાઈ, 2016
वो तन्हाई के आलम में
1222 1222 1222 1222
मिले ग़म रात के आते, वो तन्हाई के आलम में,
अकेले रह नहीं पाते, वो तन्हाई के आलम में
निदा कर के बुला लेना मुझे तुम जब भी जी चाहे,
न ताखीर हो मेरी आते, वो तन्हाई के आलम में,
मेरे दिल को सुकूँ होता, मुझे लगती नहीं दूरी,
तुम्हे ही हम अगर पाते, वो तन्हाई के आलम में,
सफर मुमकीन नहीं है यूँ, अकेले अब मेरा ऐसा,
मेरे तुम दोस्त बन जाते, वो तन्हाई के आलम में,
वो ग़म ने फिर पहुँचाया है,मुझको आसमाँ तक अब,
मुझे फिर ग़म कहाँ लाते, वो तन्हाई के आलम में !
नीशीत जोशी
(निदा=sound, ताखीर=delay) 18.07.16
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