બુધવાર, 21 સપ્ટેમ્બર, 2016
फुरकत से भी हम तो, ऐसे फुरसत में है
फुरकत से भी हम तो, ऐसे फुरसत में है,
शहर-ए-खामोशा में, ऐश-ओ-इशरत में है !
जब से देखा है मुझको, ख्वाबों में तुमने,
हर रातें तब से मेरी, कुछ हरकत में है !
यादों में कब तक तुम,संभालोगे मुझको,
कब तुम बोलोगे, ये सांसे बरकत में है !
हदया-ए-गुलदस्ता कर तू मैयत पे मेरी,
क्या ये हसरत भी मेरी अब जुलमत में है !
दिल के सब झख्मो को, तुम कर दो झख्मी अब,
दरमाँ उसका, चारागर के हिकमत में है !
नीशीत जोशी 20.09.15
(फुरकत=जुदाई,शहर-ए-खामोशा=श्मशान,ऐश-ओ-इशरत=luxury,हदया =offering,
जुलमत=अंधेरा,दरमाँ=इलाज, चारागर= doctor,हिकमत= जानकारी)
भीगते है साथ हम उसका निभाने के लिए
2122 2122 2122 212
इंतजाम कुछ दर्द का हमसे कराने के लिए,
जिंदगी में आ गया वो ये बताने के लिए,
झख्म दे कर कह रहे है कुछ नहीं उसने किया,
घाव हमने तब खुरेचे खूँ दिखाने के लिए,
शाम होते वस्ल की यादें करे हैराँ मुझे,
और शब भर ख्वाब आते हैं सताने के लिए,
आसमाँ भी रो रहा है आज तुम भी देख लो,
भीगते है साथ हम उसका निभाने के लिए,
ख्वाहिशों ने फिर बढा दी बेकरारी कुछ यहाँ,
भागती होगी वहाँ दिल की राह पाने के लिए !
नीशीत जोशी
कुछ लोग
મંગળવાર, 13 સપ્ટેમ્બર, 2016
न जाना तेरा प्यार, पाने से पहले
नहीं ख्वाब आते, बुलाने से पहले,
वो रातें सताए, सुलाने से पहले,
न तुम आजमाओ, मुझे उस सफर में,
कि आसाँ कदम हो, बढाने से पहले,
नहीं रात आती, तराना सुनाने,
न तडपा मुझे तू, सुनाने से पहले,
रखी याद दिल में, उसी में छुपे हो,
अंदर दिल ये रोए, रुलाने से पहले,
बहाना बनाया, मुझे डर दिखाया,
बहुत खौफ खाया, जमाने से पहले,
किसे दर्द की हम, सुनाए कहानी,
सितम सह लिया, झख्म खाने से पहले,
अदाकत नहीं थी, सदाकत रही तब,
न जाना तेरा प्यार, पाने से पहले,
मुहब्बत हुई 'नीर',क्या क्या बचाए,
बसा लो जिगर, लूट जाने से पहले !
नीशीत जोशी 'नीर'
नहीं होगी कमी
1222-1222-1222-1222
नहीं होगी कमी उस दर्द में, दास्ताँ सुनाने से,
इलाज-ए-ग़म नही होता कभी आँसू बहाने से,
दिखा कर प्यार धोखा दे गया है हमसफर कोई,
मगर दिल याद करता है, उसी का जिक्र आने से,
न कोई जुस्तजू अब है न कोई ख्वाहिशें बाकी,
मगर आते नहीं है बाज, मुझको वह सताने से,
निभा तो ले कभी दोस्ती, अदावत भूल करके,
मिलेगा प्यार बेहद, दोस्त मुझको तो बनाने से,
मुकम्मल प्यार होता ही नहीं पढकर किताबों को,
मिलेगी ये मुहब्बत सिर्फ जज्बाते जताने से !
निशीथ जोशी
आँख भर आई
१२१२ ११२२ १२१२ २२
ग़मों ने शोर मचाया तो आँख भर आई,
अजाब दिल तक आया तो आँख भर आई,
मुहाल है अब जीना मेरा बगैर उसके,
उसे ये दर्द सुनाया तो आँख भर आई,
सज़ा सुना कर ऐसा किया मुझे तन्हा,
उसे दिया जो वकाया तो आँख भर आई,
अदीब गर हो लिखो प्यार की गझल कोई,
ये इल्म जो समझाया तो आँख भर आई,
किसे किसे दिखलाता मेरे वो झख्मो को,
उसे ज़रा सा दिखाया तो आँख भर आई !
नीशीत जोशी
(अजाब=trouble, वकाया= news of accident) 31.08.16
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ્સ (Atom)