બુધવાર, 21 સપ્ટેમ્બર, 2016
फुरकत से भी हम तो, ऐसे फुरसत में है
फुरकत से भी हम तो, ऐसे फुरसत में है,
शहर-ए-खामोशा में, ऐश-ओ-इशरत में है !
जब से देखा है मुझको, ख्वाबों में तुमने,
हर रातें तब से मेरी, कुछ हरकत में है !
यादों में कब तक तुम,संभालोगे मुझको,
कब तुम बोलोगे, ये सांसे बरकत में है !
हदया-ए-गुलदस्ता कर तू मैयत पे मेरी,
क्या ये हसरत भी मेरी अब जुलमत में है !
दिल के सब झख्मो को, तुम कर दो झख्मी अब,
दरमाँ उसका, चारागर के हिकमत में है !
नीशीत जोशी 20.09.15
(फुरकत=जुदाई,शहर-ए-खामोशा=श्मशान,ऐश-ओ-इशरत=luxury,हदया =offering,
जुलमत=अंधेरा,दरमाँ=इलाज, चारागर= doctor,हिकमत= जानकारी)
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