રવિવાર, 12 માર્ચ, 2017
अपनों को भुला डाला है दौलत की हवस ने
221-1221-1221-122
इंसान तो है सब कोई दिलदार नहीं है,
ये शह्र है कैसा की यहाँ यार नहीं है,
अपनों को भुला डाला है दौलत की हवस ने,
रिश्ते हैं ज़रूरत पे टिके, प्यार नहीं है,
महफिल में सुनी सब की ग़ज़ल हमने भी लेकिन,
इस बज्म में तुम सा कोई फनकार नहीं हैं,
ये अब के बरस कैसी हवा आयी चमन में,
गुलशन तो कोई इक भी गुलजार नहीं है,
तुम दिल को कभी चोट न पहुंचाओ मेरे दोस्त,
ये फूल सा नाज़ुक है कोई खार नहीं है !
नीशीत जोशी
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