રવિવાર, 12 માર્ચ, 2017

जिंदगी फिर मुझे क्यों डराती रही

जान जाती रही,रात आती रही, याद आ कर मुझे फिर सताती रही, जब्त जज्बात थे,चुप रहे लब मेरे, आँख ही थी जो सब कुछ बताती रही, आजमातेे रहे इश्क को इस कदर, जिंदगानी मेरी लडखडाती रही, तुम बने फूल तो मैं भी भँवरा बना, तुम मुझे बागबाँ फिर बनाती रही, रो पडा आसमाँ दास्ताँ सुन तेरी, फर्श पे फिर कयामत वो ढाती रही, मैंने दे कर खुशी ले लिये सारे ग़म, जिंदगी फिर मुझे क्यों डराती रही, चेहरे पे खुशी और दिल में थे ग़म, बेबसी 'नीर' का दिल जलाती रही ! नीशीत जोशी 'नीर'

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