રવિવાર, 12 માર્ચ, 2017

अल्फाज़ मिट रहे हैं जो मेरी क़िताब से

221 2121 1221 212 अल्फाज़ मिट रहे हैं जो मेरी क़िताब से, किसने जगा दिया है मुझे मेरे ख़्वाब से ! बोला अभी नहीं था वो मेरे मुहिब्ब को, किसने बताया क्या पता है किस हिसाब से ! आते रहे खयाल सताने मुझे यहाँ, किसको कहें बचाये मुहब्बत के ताब से ! रहते नहीं निशाँ कभी वो रेत पे यहाँ, चाहे रखे कदम वहाँ जो हों गुलाब से! बातें अभी हुई थी ज़रा प्यार की शुरू, किस रश्क ने जगा दिया है आज ख्वाब से ! किसने सुना वो ज़ख्म का कितना है दर्द अब, देकर मुझे वो ज़ख्म नवाजा खिताब से ! वाईज़ कह दिया है वो खामोश 'नीर' को, बहते हुए वो अश्क़ को कहते है आब से ! नीशीत जोशी 'नीर'

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