देखा मैने, कभी कभी बाते बहोत छोटी लगती है
मगर वही बाते कभी कभी बहोतही बडी लगती है
दिल के जख्मो को मल्हम लगाया हमने
पर जख्मो की नीकली आह नासूर लगती है
आने का इन्तजार था ना आये वो पर आयी याद
आने भी न दी पुरी यादे ,रात भी तो अब जाती लगती है
सुना था बाते करना अच्छा लगता है उन्हे
करने बैठे बाते तो दोस्तो को फरियाद लगती है
नीशीत जोशी
ગુરુવાર, 10 સપ્ટેમ્બર, 2009
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