રવિવાર, 22 મે, 2016
न मांगेंगे जन्नत भी अब तो दुआओ में
पिला साकी तेरे मयखाने तक आये है,
हमे तूने ही तो नयनों के जाम पिलाये है,
न तडपाना तुम करके बंध दरवाजे तेरे,
बडी मुद्दतो के बाद मंजिल हम पाये है,
जमाना दे दर्द भी गर, तू देना प्यार मुझे,
मेरी इक तू ही तो है,बाकी सब पराये है,
न मांगेंगे जन्नत भी अब तो दुआओ में,
जमाने से आशिकों ने ही पत्थर खाये है,
करते हो फिक्र, शक के दायरे में रह कर,
हर कुचे को 'नीर' ने इश्क़ से सजाये है !
नीशीत जोशी 'नीर’22.05.16
रूह पाक रख कर, उसे बुलाया जा सकता है
देकर उसे प्यार, बचाया जा सकता है,
बज्मे तन्हाई से, हटाया जा सकता है !
सिर्फ याद करने भर से, मिलती नहीं मुहब्बत,
जज्बात जता कर, मुहिब्ब पाया जा सकता है !
रो रहे है मुन्तज़िर, आँखों का वास्ता देकर,
उसे हसाने, दिलबर से मिलाया जा सकता है !
बहुत हुआ अब, भाषण गरीबी के खिलाफ,
रोटी का कोई इन्तजाम, कराया जा सकता है !
करते हो जुर्म, लडकी को कोख में मार कर,
जहन्नुम में, बेहद सताया जा सकता है !
गर चाहो तो, खुदा भी मिल जाएगा जहाँ में,
रूह पाक रख कर, उसे बुलाया जा सकता है !
नीशीत जोशी 20.05.16
ગઝલ મારી અને રજુઆત પણ મારી હતી
ગઝલ મારી અને રજુઆત પણ મારી હતી,
દરેકે શબ્દો માં મેં તારી વાતને ઢાળી હતી,
રમત સમજાઈ નહોતી છતાં, રમવી ગમી હતી,
ને તારી ખુશીઓ ને ખાતર, જાણીને હારી હતી,
જ્યાં જ્યાં નિહાળી મેં તને, ઝિંદગીમાં મારી,
દરવાજા હતા બીડેલા, ને બંધ એ બારી હતી,
દરિયો કેમ થયો ખારો? એ વાત સમજાઈ હવે,
ગાલો પર જે રેલાતી'તી, અશ્રુધાર ખારી હતી,
હવે તું પણ આવે છે શહેરમાં, મુસાફર બની,
સ્મરણ હશે જ તને, તું તો ક્યારની મારી હતી.
નીશીત જોશી 17.05.16
आ गया तलातुम समंदर में, कोई वजह तो होगी
बात अच्छी लगी, जरूर लहजा अच्छा रहा होगा,
कुछ बातें छुपाकर ही, उसने फ़साना कहा होगा,
हो गए हो तुम परेशाँ, तो तन्हा वोह भी हुआ होगा,
हिज्र से मिला होगा ग़म, यक़ीनन उसने सहा होगा,
बोझिल हुई होगी आँखे, मंजिल दूर दिखी होगी,
बनके रहबर किसीने, सफर को आसाँ कहा होगा,
आ गया तलातुम समंदर में, कोई वजह तो होगी,
किसी दीवाने का अश्क, जरूर गिर के बहा होगा,
हवेली की वो बेजान दीवारें भी, देती होगी गवाही,
बुनियाद की कमजोरी से ही, महल वो ढहा होगा !
नीशीत जोशी 14.05.16
मैं यहाँ ठीक हूँ
कासिद, तू कहना उनसे, मैं यहाँ ठीक हूँ,
रहते हो क्यों फिक्र में, मैं यहाँ ठीक हूँ,
क्या हुआ, जो बिछा दिए है काँटें राह पे,
रंग लिए है पाँव लहू से, मैं यहाँ ठीक हूँ,
तडपाती है उनकी यादें, रोज़ शाम ढले,
साथ रहते है तन्हाई के, मैं यहाँ ठीक हूँ,
बह गया समंदर भी, आँखो से अब तो,
खुश्क उसको भी होने दे, मैं यहाँ ठीक हूँ,
गरचे देख ले खिडकी से मैयत को मेरी,
कहना रोयें न मेरी लाश पे, मैं यहाँ ठीक हूँ !!
नीशीत जोशी 04.05.16
રવિવાર, 1 મે, 2016
લહેરો કાપશે, આવી કિનારાને
લગાગાગા લગાગાગા લગાગાગા લગા
સવાલો પૂછશે, ઉત્તર બધા દેવાય નહિ,
અજાણ્યા સમક્ષ, એમજ તો હૃદય ખોલાય નહિ,
ભલેને સંઘરી રાખ્યા દરદ, દિલમાં છતાં,
અજાણ્યાની કનેથી, કાઈ મલમ મંગાય નહિ,
હશે મૌજુદ દુશ્મન, દોસ્તોની ભીડમાં,
બધા પર, આંધળો વિશ્વાસ પણ તો થાય નહિ,
ડહાપણ ડહોળવા આવે ઘણાં, પણ યાદ રે,
નકારો નહિ છતાં, બવ ભાર પણ લેવાય નહિ,
લહેરો કાપશે, આવી કિનારાને છતાં,
વળે દરિયા તરફ, તે ક્યાય પણ ફંટાય નહિ .
નીશીત જોશી 27.04.16
दुनिया की जुबानी कुछ और थी
वो कयामत रात की कहानी कुछ और थी,
अंधेरे का खौफ फिज़ा तुफानी कुछ और थी,
खडे थे दोनो साहिल पे कुछ तन्हा तन्हा,
पर उछलती लहेरों की रवानी कुछ और थी,
नजरें मिली उन टमटमाती रोशनी के दरमीयाँ,
लब थे खामोश,आँखों में कहानी कुछ और थी,
वस्ल की वो रात बढने लगी हिज्र की तरफ,
हँसता चेहरा,रोती आँखें सुहानी कुछ और थी,
कहते न बन पडा उस रात एक दुसरे को 'नीर',
वोह खामोश रहे,दुनिया की जुबानी कुछ और थी !
नीशीत जोशी 'नीर 23.04.16
दिल शोर मचाता है
रातभर कोई हमें इतना सताता है,
प्यार करके उसे दमबदम जताता है,
रूठ जाता है मान जाने कि शर्त पे,
ऐसा करके कुछ वो अपना बनाता है,
बर्फीले बदन पे जरा सा हाथ रक्खा,
दुनिया के डर से कितना शरमाता है,
रश्क की बात करके जलाये वो हमें,
और हम जो बोले तो अश्क बहाता है,
बिताए थे पल आग़ोश में लेकर उसे,
याद आते ही 'नीर' दिल शोर मचाता है !
नीशीत जोशी 'नीर' 19.04.16
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