રવિવાર, 7 ઑગસ્ટ, 2016

तुम्हारा इम्तिहान भी है क्या?

२१२२ २१२२ २१२२ २२ ये मेरा है तो, तुम्हारा इम्तिहान भी है क्या? वो हमारे दरमियाँ, ये आसमान भी है क्या? इस शहर में तो, नयी आई लग रही हो तुम, इस गली में ही, तुम्हारा मकान भी है क्या? क्यों मुलाक़ात नाम से, तुम डर गयी हो,बोलो, मुँह में कोई नहीं, उज़्मा जुबान भी है क्या? प्यार में मुज़्तर बना करके, रखेंगे दिल में, हाफ़िज़ा में तो रखे, वो खानदान भी है क्या? दादखा बनके तुम्हे, की इस्तिदा भी मैंने, हाथ में कोई तेरे दिलकश बयान भी है क्या? नीशीत जोशी 24.07.16 (उज़्मा= best, मुज़्तर= a lover, हाफ़िज़ा= good memory, दादखा=petitioner, इस्तिदा=petition) 24.07.16

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