રવિવાર, 23 એપ્રિલ, 2017

और क्या क्या ?

प्यार यादें फिर वफा है और क्या क्या ? शाम की ये सब दवा है और क्या क्या ? राज़ तो है इस सुखन के कुछ मेरे भी, उसमें वादे है जफ़ा है और क्या क्या ? अश्क बहते है यहाँ आँखो से फिर अब, ये जिगर भी सह रहा है और क्या क्या? गुल के ही मानिंद तो सीखा था जीना, ये अदा है या खता है और क्या क्या ? अब नहीं कोई किसी का है यहाँ पर, बस बची ये तेरी दुआ है और क्या क्या ? कारवाँ तो बन गया था उस सफर में, अपनी मंजिल लापता है और क्या क्या ? तीरगी में ही कटी जब 'नीर' हर शब, ख्वाब भी तेरा खफा है और क्या क्या ? नीशीत जोशी 'नीर'

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