રવિવાર, 23 એપ્રિલ, 2017
इश्क में कुछ तो अलामत ही सही
इश्क में कुछ तो अलामत ही सही,
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही !
हो तुझे परहेज़ गर फिर झूठ से,
गुफ्तगू में तब सदाकत ही सही !
आ नहीं सकते वो अब जब वस्ल पर,
दरमियाँ है ग़म,फलाकत ही सही !
खुश रहे नाराज हो कर हम बहुत,
कुछ हमारी ये अलालत ही सही !
बज़्म में खामोश हैं ये सोच कर,
कुछ तसव्वुर में बगावत ही सही !
शायरी की साहिरी तुम सीख लो अब,
महफिलों में फिर वो दावत ही सही !
है तलातुम इस जहन में क्या करें,
हिज्र का दिल में दलालत ही सही !
नीशीत जोशी
(अलामत-sign,अदावत-hatred, सदाकत- true,फलाकत-misfortune,अलालत-sickness, साहिरी-जादूगरी, दलालत-proof)
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