ગુરુવાર, 30 એપ્રિલ, 2009

उसे कर आबाद, दे देना सब कुछ

न करने की चाह मे करते रहे बहोत कुछ
कर के भी जो कीया खो दिया बहोत कुछ

शाम होते ही आते थे जो दरमींया मेरे
आज रैना बीती, छोड यादे, न आया और कुछ

सोचा होगी कोइ ऐसी मजबुरी शायद
वरना आके यंहा दे जाते बहोत कुछ

सुना है जहांवालो से की महोब्बत दुआ है
ए खुदा उसे कर आबाद, दे देना सब कुछ

'नीशीत जोशी'

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