न करने की चाह मे करते रहे बहोत कुछ
कर के भी जो कीया खो दिया बहोत कुछ
शाम होते ही आते थे जो दरमींया मेरे
आज रैना बीती, छोड यादे, न आया और कुछ
सोचा होगी कोइ ऐसी मजबुरी शायद
वरना आके यंहा दे जाते बहोत कुछ
सुना है जहांवालो से की महोब्बत दुआ है
ए खुदा उसे कर आबाद, दे देना सब कुछ
'नीशीत जोशी'
ગુરુવાર, 30 એપ્રિલ, 2009
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nice 1 bhai......
જવાબ આપોકાઢી નાખોnice 1 bhai
જવાબ આપોકાઢી નાખો