શનિવાર, 20 નવેમ્બર, 2010

चले आना

आये जो मेरी याद मेरे नजदिकमे चले आना,
दुर हु तो क्या हुआ मेरे सपनोमे चले आना,

फिरता रहुगा तेरे ही इर्द-गीर्द साम-सवेरे,
याद हु तेरी कभी भी जी चाहे तब चले आना,

कहते हो तस्वीर बनाके छुपा रखी है दिलमे,
तस्वीर गर धुंधली पडे तो मेरे पास चले आना,

तेरी हर हसरतो को पहचान लिया हाजिर रह,
और भी पुरी करनी हो ख्वाईश तो चले आना,

जानता हु यह भी ख्वाईश तेरी एक रह जायेगी,
होगी पुरी लो, दिदार-ए-सनम करने चले आना |

नीशीत जोशी

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