नम थी आंखे, एहसासभी न था कम,
फिर वोह आये, और कोइ न था गम,
अहेसान जताते गये, गीनाते गये सब,
लगा ऐसा, सलाखोके पीछे आ गये हम,
उनकी अदायगी भी क्या लाजवाब थी,
सुना गये सब कुछ, थे वोह जो करम....
नीशीत जोशी
શનિવાર, 20 નવેમ્બર, 2010
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