आजकल वोह मुजसे रुठे रुठे से लगते है,
वोह मुजसे कुछ तो खफा खफासे लगते है,
न थी कोइ खता, न कोइ गिला-शिकवा,
फिर भी कुछ तो है,वोह नाराज से लगते है,
अगर आये, कुछ लब खोले, कुछ नयन बोले,
पता तो चले, वोह कुछ तो गुमसुम से लगते है,
अच्छे दिनो मे भुल जाते है गर है कुछ भी,
मगर इन दिनो वोह कुछ तो मुरजाये से लगते है,
रुठ जाना बारबार उनकी अदायगी हो शायद,
यही सोच के बारबार हम भी उन्हे मनाने लगते है....
नीशीत जोशी
શનિવાર, 20 નવેમ્બર, 2010
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો