आयी जो उनकी याद आती चली गयी,
प्यारके सुरीले साज सुनाती चली गयी,
गुनगुनते रह गये हम उनके नग्मे,
वोह आयी और गझल बनाती चली गयी,
कहानी तो अश्क की अलग थी वहां,
आंखो से पुरा दरिया बहाती चली गयी,
इन्तजार की हद भी तो जान लिजये,
खुली थी आंखे जब जान नीकलती चली गयी,
जब गर्दीशमे थे चांद सीतारे आसमांमे,
छुपके वो आयी और रोशनी करती चली गयी.....
नीशीत जोशी
શનિવાર, 20 નવેમ્બર, 2010
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