રવિવાર, 2 ફેબ્રુઆરી, 2014

तुम देते जो साथ, कुछ पल जी लेते

the_bower_meadow-huge तुम देते जो साथ, कुछ पल जी लेते, तुम पीलाते ज़हर वो भी हम पी लेते, शहरे खामोशा के जैसे बनाने को पल, तुम कहते तो ओठो को हम सी लेते, बेकल न रहती हमारी निगाह-ए-यास, ज़ब्त-ए-ग़म खुदा से हम ले ही लेते, मुहब्बत कि सदाक़त आती सामने, दुनिया के वार-ए-तेग सह भी लेते, तुम ना उठाते सवालात रवायत के, जीते थे एकदूजे वास्ते वैसे जी लेते !!!! नीशीत जोशी (शहरे खामोशा= स्मशान, निगाह-ए-यास= उदास आँखे, ज़ब्त-ए-ग़म= दुःख सहने कि शक्ति, सदाक़त= सत्यता, तेग= तलवार, रवायत= रश्मो रिवाज़) 28.01.14

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