શનિવાર, 5 એપ્રિલ, 2014

ना जुस्तुजू, ना कोई ख्वाइश रह गयी

thm_dame_spiegel_hi ना जुस्तुजू, ना कोई ख्वाइश रह गयी, ना दोस्ती की अब आजमाइश रह गयी, जब जब रखी जुस्तजू मैंने मुहब्बत की, महबूब की आँखों में पैमाइश रह गयी, हर बात बखूबी टालते रहे थे अक्सर, ना कोई जवाब की गुंजाइश रह गयी, उस दिल को भी कर दिया उनके हवाले, नश्तर चलने की करतबी नुमाइश रह गयी, खेल समझा उसने, पाकीज़ा मुहब्बत को, इधर चाहतों की बस फरमाइश रह गयी !!!! नीशीत जोशी 31.03.14

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