શનિવાર, 27 ડિસેમ્બર, 2014
बहा के आंसू, रवायत निभाता क्यों है ?
हर शाम मेरे दर, मेरे तसव्वुर में, तू आता क्यों है ?
इतफ़ाक नहीं मुझ से, फिर, अपना बताता क्यों है ?
रहा होगा कभी, मुहब्बत का भरम, मेरे ये दिल को,
सितमगर बन कर, तू अब नफरत, जताता क्यों है ?
लगता है, कुछ प्यार बाक़ी है तेरे जहन में, अब भी,
वरना, चश्म-ओ-तर हो कर, यहां से जाता क्यों है ?
बिछड़ कर मुझ से, जानते है, खुश नहीं हो तुम भी,
बनके संगदिल, फिर, ज़ब्त-ए-ग़म सिखाता क्यों है ?
मुद्दई, लाख इंकार करो तुम, यादो में नहीं आने का,
हिज्र में, फिर, बहा के आंसू, रवायत निभाता क्यों है ?
नीशीत जोशी
{ चश्म-ओ-तर=wet eyes, ज़ब्त-ए-ग़म= दुःख सहने की शक्ति) 10.11.14
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