શનિવાર, 27 ડિસેમ્બર, 2014

घर में तू सब की लाडली

चिड़ियों की तरह चहकती थी,खुश्बू की तरह महकती थी, घर में तू सब की लाडली,सभी की घडकन में धड़कती थी, बड़ी हुयी जब तू ,सपने भी खुद के सजोने लगी लाजवाब, बातें तेरी घर के कोने कोने में पायल की तरह खनकती थी, उतर आया चाँद से एक राजकुमार,ले जाने तुजे अपने साथ, हो जाएगा घर वीरान बात यही हमारे जहन से उभरती थी, नियति है करनी होगी बिदा तो कर लिया है दिन मुक़्क़मल, जिम्मेवारी बढ़ेगी,थम जायेगी बर्फ सी जो कूदती उछलती थी, इम्तिहान अब शुरू होगा जिंदगी का असल 'ओ, लाड़ली', भरोषा है आओगी अव्वल, तू अव्वल आना ही समझती थी !!!! नीशीत जोशी 06.12.14

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