શનિવાર, 27 ડિસેમ્બર, 2014
सुनी पड़ी है ये महफ़िल तेरे बगैर
आज तुम याद बेसुमार आते हो,
आ के तसव्वुर में फिर बहलाते हो,
दौड़ती है काटने को तन्हाईया,
आँखों में अश्क़ तुम भर जाते हो,
खुम है मय है साक़ी है तेरे लिए,
फिर मयक़दे को क्यों तरसाते हो?
रोशन कर दो फिर से हर चराग,
मायुसो का दिल क्यों जलाते हो?
सुनी पड़ी है ये महफ़िल तेरे बगैर,
महफ़िले सरताज़ तुम कहलाते हो !
नीशीत जोशी 25.12.14
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો