શનિવાર, 4 જૂન, 2016
बन गया
डूब कर वो इश्क में, कैसा सिकन्दर बन गया,
आईने के सामने आते ही, पत्थर बन गया !
आ गये वो, दास्ताँ मुझको सुनाने, प्यार की,
बात तो ये है, तसव्वुर भी, मुकद्दर बन गया !
ख्वाब तो लेते रहे अंगडाईयाँ, शब भर, यहाँ,
और हमारी रात, बिस्तर भी, सितमगर बन गया !
हद नचाता है 'मदारी', जो समझ आता नहीं,
फिर बुतों से क्यों सजा, मंदिर भी, दर दर बन गया !
अब रहूँगा मैं, तेरी आग़ोश में हरदम, यहाँ,
पा लिया मैने तुझे, तू आज, रहबर बन गया !
नीशीत जोशी 31.05.16
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