શનિવાર, 25 જૂન, 2016
अकेले कदम ही, बढाना पडेगा
जमाना कहेगा, बचाना पडेगा।
दरिन्दों तुम्हे अब, डराना पडेगा।
बहा के तुझे, ले चला हूं कहाँ पर,
नदी को, समंदर दिखाना पडेगा।
उतारा गया बाम पे, चाँद को भी,
कि पहरा वहाँ भी, लगाना पडेगा।
दिखाया न रास्ता, कभी भी किसीने,
अकेले कदम ही, बढाना पडेगा।
मिले गर बुलंदी, न भूलों मुहब्बत,
फसाना हमें ही, सुनाना पडेगा।
नीशीत जोशी
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