રવિવાર, 23 ઑક્ટોબર, 2016

वो हज़ारो हसरतों के सामने लाचार था !

2122-2122-2122-212 जिंदगी में एक कदम चलना भी दुश्वार था, वो हज़ारो हसरतों के सामने लाचार था ! दिल लगाना भी अदा होती है शायद फन नहीं, प्यार में ये दिल मेरा ऐसे मगर बेज़ार था ! प्यार से तुम थाम लेना आज बाँहों में मुझे, क्योंकि वो लम्हा तुम्हारे ही बिना बेकार था ! तब मेरी हर रात एक एक दर्द करती थी बयाँ, झख्म भी जैसे मेरे दिल का नया अन्सार था, इश्क में कब तक करे हम इंतजारी अब कहो, वो ना कहना प्यार में भी तो तेरा इज्हार था ! प्यार के हर एक नुमाइन्दें भी अपने घर चले, इश्क से परहेज़ था तुमको कि फिर इन्कार था ! वो खिलाडी तो नही कोई तुम्हारी ही तरह, हारना उस खेल में तो 'नीर' का शेआर था ! निशीथ जोशी 'नीर' (बेज़ार-नाखुश, अन्सार-friend, शेआर-habit)

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