રવિવાર, 23 ઑક્ટોબર, 2016
हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए
२१२२ २१२२ २१२
वो कभी तन्हा सफर में खो गए,
तब तसव्वुर में असीरी हो गए,
इल्तजा थी जो कभी पूरी हुई,
प्यार का जज्बा जताने को गए,
वस्ल की उम्मीद उसने छोड़ दी,
हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए,
शाम तन्हा रात भी खामोश थी,
ख्वाब ने ओढा फलक फिर सो गए,
मुद्दतो से वो रहे खामोश पर,
गुफ्तगू को बेबहा बल हो गए !
नीशीत जोशी (असीरी =कैद, बेबहा =बहुमूल्य) 12.10.16
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